योगमुद्रा
👉2-योगमुद्रा आश्रम विद्यापीठों को अपनी प्रयोगशाला बनाकर हमारे किन्ना और विज्ञान के बिना महापुरुषों ने हमें अपने स्वयं के अनुभव के परिणामस्वरूप कई प्रकार के जीवनदायी ज्ञान दिए हैं। योग उनमें से एक है। दोनों न्यायाधीशों से लेकर पौग की साधना, आराधना और उपासना तक वह योग मुद्रा केवल विज्ञान है। योग मुद्राओं की शुरुआत कब हुई इसका कोई इतिहास नहीं है।
👉भारत में आज का विज्ञान इतना विकसित नहीं था। यह मुद्राशास्त्र उससे पहले यानी वेदकाल से प्रचलित है। इश्वंदना, जब हम बड़ों को प्रणाम करते हैं या उनका अभिवादन करते हैं, तो हाथ की उंगलियां आपस में जुड़ जाती हैं। और एक निश्चित प्रकार की आकृति बन जाती है। इसे नमस्कार मुद्रा कहते हैं। मुद्रा को शारीरिक अभिव्यक्ति की कला या श्रवण को जगाने वाली क्रिया भी कहा जाता है।
👉 हमारे शास्त्रों में सबसे साहसिक सिक्कों के नाम जाने जाते हैं।
👉यहां तक कि डांस में भी शरीर के अलग-अलग हिस्सों की पोजीशन में कई आसन देखने को मिलते हैं।
👉 देवी-देवताओं या महापुरुषों के चित्रों और मूर्तियों में भी विभिन्न मुद्राएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं।
👉 रोजमर्रा की जिंदगी में भी हम कई क्रियाओं में सहज रूप से आसन करते हैं। जैसे ताली बजाना, ताली बजाना आदि।
👉 शिशु की उंगली को पकड़ते हुए हाथ की स्थिति भी एक मुद्रा होती है। ये आसन व्यक्ति को स्वस्थ और निरोगी बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
👉 यदि विभिन्न प्रकार के सिद्ध शरीर आसनों से समस्याएँ की जाएँ तो शरीर की ऊर्जा बढ़ जाती है।
👉इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है कि सफलता (उपलब्धि) के लिए मुद्रा के समान कोई क्रिया नहीं है। हमारे हाथों की उंगलियों से एक खास तरह की विद्युत ऊर्जा लगातार निकलती रहती है।
👉उंगलियों को अलग-अलग तरीके से जोड़ने से इस ऊर्जा की तरंगें उसी के अनुसार प्रवाहित होती हैं और शरीर की अंतःस्रावी ग्रंथियों पर प्रभाव डालती हैं।
👉 जो हमारे शरीर के पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) और हमारी प्रकृति के त्रिक (भाषण, पित्त, कफ) को संतुलित करता है। इस प्रकार मुद्रा अध्ययन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास करना और व्यक्ति के स्वभाव में सकारात्मक परिवर्तन लाना है।
👉 योग आसन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें: अध्ययन क्षेत्र स्वच्छ - हवादार और शांत होना चाहिए।
👉 एक निश्चित स्थान और एक निश्चित समय लाभ से बनता है। ढीले और सूती कपड़े पहनने चाहिए। शरीर को शिथिल रखते हुए।
👉 मन को शांति से और एकाग्रता के साथ अध्ययन करना चाहिए। यदि आसनों का अभ्यास नियमित रूप से 10 मिनट से शुरू करके धीरे-धीरे 40 मिनट तक किया जा सकता है, तो यह अधिक फायदेमंद हो जाता है।
👉उंगली खींचकर योगासन करने की कोशिश न करें। योगाभ्यास में आसन करते समय आपको अपनी उंगलियों पर अंगूठी, कलाई पर अंगूठी या लोमड़ी नहीं पहननी चाहिए। योगाभ्यास में ध्यान रखने योग्य सभी बातों को ध्यान में रखते हुए योग मुद्रा का एक निश्चित लाभ होता है। कुछ उपयोगी आसन: 1. शनमुद्रा: स्थिति: (I) पद्मासन, वज्रासन या सुखासन में चुपचाप बैठें।
👉1. शनमुद्रा: स्थिति: पद्मासन, वज्रासन या सुखासन में चुपचाप बैठ जाएं।
👉दोनों हाथों के बीच वाले हिस्से को अंगूठे के आधार पर रखें और उस पर अंगूठा रखें और बाकी तीनों तर्जनी, अनामिका और अग्रभाग को सीधा रखें।
👉लाभ:
(1) शरीर की ऊर्जा को बढ़ाता है। जिससे शरीर ऊर्जावान बनता है।
👉 (2) पाचन बढ़ता है और मोटापा घटता है। शरीर में ठंडक की मात्रा को कम करने से पेट फूलने से राहत मिलती है।
👉 3) रक्त में कोलेस्ट्रॉल कम करता है। लीवर के रोग दूर होते हैं।
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👉पृथ्वीमुद्रा: स्थिति:
👉मुद्रा आसन में शांत बैठें। दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों के ऊपर रखें।
👉 दोनों हाथों की अनामिका (तीसरी उंगली) को हथेली की ओर पकड़ें, अंगूठे को अग्रभाग के सामने दबाएं और शेष तीन तर्जनी, मध्यमा और छोटी उंगलियों को घुटने के ऊपर सीधा रखें और आकृति के अनुसार मिट्टी की मुद्रा बनाएं।
👉 लाभ:) शरीर की दुर्बलता को दूर करता है। मोटापा कम होता है और वजन संतुलित रहता है।
👉पाचन शक्ति, ऊर्जा और सात्विक गुणों का विकास होता है। शरीर में शक्ति और जीवन शक्ति, जोश और तेज आता है।
| वरुणमुद्रा स्थिति |
👉वरुणमुद्रा स्थिति:
👉शांत बैठो। दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों के ऊपर रखें।
👉 अंगूठे को छोटी उंगली से जोड़कर रखें और अन्य तीन तर्जनी, मध्यमा और अनामिका को घुटनों के ऊपर सीधा रखें, जैसा कि चित्र में दिखाया गया है।
👉लाभ: (1) शरीर में जल की मात्रा को बढ़ाता है। शरीर में पूरी तरह से सूखापन और सूखापन आ जाता है। जैसे-जैसे शरीर में नमी आती है, त्वचा सुंदर और चिकनी होती जाती है। शरीर में डिहाइड्रेशन से होने वाले रोग दूर होते हैं। गर्मी के मरीज को राहत
- 👉 शून्यमुद्रा: स्थिति: सिद्धासन में चुपचाप बैठ जाएं, दोनों हाथों की हथेलियों को घुटनों पर रखें।
- 👉 शरीर में ठंडक की मात्रा वायु प्रदूषण से दूर होती है। रक्त में कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। लीवर के रोग दूर होते हैं।
| हृदयमुद्रा |
👉हृदयमुद्रा: किसी भी मुद्रा में शांत बैठ जाएं।
👉 दमा जैसे चर्म रोगों में बहुत उपयोगी।

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